गुरु अमरदास जी सिखों के तीसरे गुरु थे। गुरु नानक जी की वाणी से प्रभावित होकर वे गुरु अंगद देव जी के संपर्क में आए और सिख बन गए। उस समय उनकी आयु लगभग 62 वर्ष थी। वे मन और तन दोनों से समर्पित हो गुरु अंगद साहिब की सेवा में रत हो गए। एक पहर रात रहते ही उठकर वे तीन कोस दूर व्यास नदी से गुरु जी के स्नान के लिए पानी लाया करते थे। वे लंगर की सेवा करते, सिख संगत की सहायता करते और परमात्मा के सिमरन में लीन रहते। उन्होंने यह सेवा निरंतर बारह वर्ष तक की। सेवा का ऐसा उदाहरण कोई और नहीं मिलता है। उनकी सेवा भावना का सम्मान करते हुए गुरु अंगद देव ने उन्हें गुरुगद्दी पर आसीन किया।
घट-घट में हैं ईश्वर
गुरु अमरदास जी का विश्वास था कि मनुष्य जैसे कर्म करता है, वैसी ही अंतर अवस्था बनती है और उसी के अनुरूप फल मिलता है। गुरु अमरदास जी ने कहा कि ईश्वर एक है और घट-घट में निवास कर रहा है। इसलिए किसी की निंदा करने के स्थान पर ईश्वर में ध्यान लगाना चाहिए। गुरु अमरदास जी ने प्रेम भाव से सेवा करने को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि इससे सुख और सहज की अवस्था बनती है और मन निर्मल होता है। गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब नगर बसाया और एक बाऊली का निर्माण कराया। वैशाखी के अवसर पर मेले की परंपरा भी गुरु साहिब ने ही आरंभ की थी।
कुरीतियों पर प्रहार, सादगी पर जोर
उन्होंने सिख धर्म प्रचार के लिए एक निश्चित व्यवस्था तैयार कर बाईस केंद्र भी बनाए। गुरु जी ने विभिन्न सामाजिक कुरीतियों जैसे सती प्रथा, पर्दा प्रथा के विरुद्ध चेतना पैदा की और कई विधवाओं के विवाह कराए। उन्होंने नियम बना दिया था कि जो भी उनके दर्शन के लिए आएगा, पहले उसे सभी के साथ एक पंक्ति में बैठ कर लंगर छकना होगा। इससे ऊंच-नीच, छुआछूत और वर्ग भेद की मानसिकता पर बड़ा प्रहार हुआ। गुरु जी ने विवाह की निरर्थक रस्मों को त्यागकर सादगी पर जोर दिया।
अमृतसर शहर बसाने के लिए स्थान का चयन
अमृतसर शहर बसाने के लिए स्थान उन्होंने ही चिह्नित किया था। गुरु अमरदास जी ने रामकली राग के अंतर्गत आनंद शीर्षक से श्री गुरु ग्रंथ साहिब में अंकित वाणी में संदेश दिया कि जीवन परमात्मा की भक्ति कर मुक्ति पाने हेतु मिला है। इसके अतिरिक्त कोई और उद्देश्य नहीं है। मन सदैव परमात्मा में रमा रहे और तन धर्म के मार्ग पर चलता रहे।
Namskar guru ji apne bahut achhe se btaya hai