कामाख्या शक्ति पीठ: महर्षि वशिष्ठ के श्राप से लुप्त हो गई शक्तिपीठ, मंदिर में नहीं है कोई मूर्ति

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इस मंदिर में मां शक्ति की कोई प्रतिमा नहीं है। यहां पर मां के योनि भाग की पूजा होती है। प्रतीक स्वरूप मंदिर के अंदर एक पत्थर है उसकी पूजा की जाती है।

विश्व प्रसिद्ध अंबुबाची मेला 51 शक्तिपीठों में से सबसे महत्वपूर्ण कामाख्या देवी के दर्शनों के लिए दुनिया भर से लोग गुवाहाटी से कामाख्या पहुंचते हैं नीलांचल पर्वत पर स्थित कामाख्या मंदिर के बारे में बहुत से ऐसे तथ्य हैं, जिससे लोग अनभिज्ञ हो सकते हैं।

इस मंदिर में मां शक्ति की कोई प्रतिमा नहीं है। यहां पर मां के योनि भाग की पूजा होती है। प्रतीक स्वरूप मंदिर के अंदर एक पत्थर है, उसकी पूजा की जाती है।

कामाख्या मंदिर से जुड़ी कथा

कहा जाता है कि एक समय में वहां का असुर राजा नरकासुर ने देवी कामाख्या को विवाह का प्रस्ताव दिया था। इस पर देवी ने एक शर्त रख दी। उन्होंने नरकासुर से कहा कि तुम आज की रात भर के अंदर नील पर्वत पर मंदिर, विश्राम गृह और रास्ते बना दोगे तो तुम से शादी कर सकती हूं, लेकिन सूर्योदय से पूर्व तुम ऐसा नहीं कर पाए तो तुम्हारी मृत्यु निश्चित है। नरकासुर ने देवी का शर्त मानकर मंदिर निर्माण के कार्य में लग गया। मंदिर, मार्ग, घाट सब बन जाने के बाद वह विश्राम गृह के निर्माण में लगा था। बताया जाता है कि सूर्योदय से पूर्व ही देवी कामाख्या के एक मायावी मुर्गे ने सुबह होने का संकेत कर दिया।

इससे नरकासुर नाराज होकर उस मायावी मुर्गे को मार डाला। हांलाकि बाद में भगवान विष्णु ने नरकासुर का वध कर दिया। बताया जाता है कि नरकासुर का अत्याचार बढ़ गया था, तब महर्षि वशिष्ठ के श्राप से देवी कामाख्या की शक्तिपीठ वहां से विलुप्त हो गई। मंदिर के अंदर पत्थर की प्रतिकृति है, जिसकी पूजा होती है।

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