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ऋषि मुनियों के काल में मैडिकल साइंस नहीं था। तब लोग ग्रह और नक्षत्रों की गणना करके रोगों से निजात पाते थे। अनादिकाल से ही ज्योतिष की विद्या से ग्रहों की गणना करके तमाम बिमारियों का पता लगाया जाता था कि मनुष्य को कौन सी बीमारी है या होने वाली है। उसके हिसाब से टोने-टोटको के प्रयोग के बारे में भी बताया जाता था।
अपनी कुंडली की गणना के माध्यम से हार्ट की बीमारी, कैंसर, टीवी, हड्डी, अस्थमा, नसों के रोग अथवा जीवन में आने वाली हर बाधा और समस्या से निजात पाया जा सकता है। इलाज के लिए ज्योतिष शास्त्र तीन मूल मंत्रों का इस्तेमाल करता है।
1.रत्न- अग्नि पुराण में उल्लेख मिलता है कि जब वृत्रासुर को मारने के लिए महर्षि दधीचि की हड्डियों से अस्त्र का निर्माण किया गया तो उस समय हड्डियों के छोटे-छोटे कण, जो इधर-उधर बिखरे थे उनसे रत्न उत्पन्न हुए। पुराणों में यह भी उल्लेख मिलता है कि जब असुरों के भय से देवता लोग समुद्र मंथन में प्राप्त अमृत घट को लेकर भागे और उस समय अमृत के कण पृथ्वी पर जहां-जहां गिरे वे सब रत्नों के रूप में प्रकट हुए।
पौराणिक और धार्मिक मान्यता जो भी हो लेकिन यह सत्य है कि रत्न खनिज पदार्थ हैं, जो हमें पृथ्वी के गर्भ से प्राप्त होते हैं। इनसे असाध्य रोगों का इलाज संभव है।

ज्योतिष में नव रत्न : ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों का रंग निश्चित है और तदनुसार प्रत्येक ग्रह के लिए उसी रंग के अनुसार रत्न निर्धारित हैं जैसे माणिक सूर्य का, मोती चंद्रमा का, मूंगा मंगल का, पन्ना बुध का, पुखराज बृहस्पति का, हीरा शुक्र का, नीलम शनि का, गोमेद राहु का और लहसुनिया केतु का रत्न है।
2.मंत्र- मंत्र जाप में इतनी शक्ति होती है कि इनसे कई तरह के रोगों का उपचार होता है। यहां तक कि इसको अध्यात्म का दवाखाना भी कहा जाता है।
“ॐ रुद्राये नमह”
उपरोक्त मंत्र को सिद्ध करने के लिए 6 महीने तक प्रतिदिन एक माला जाप करें। इस मंत्र के प्रभाव से कठिन एवं असाध्य रोगों पर विजय प्राप्त होती है। गंभीर रोग की स्थिति में पानी में देखकर मंत्र जाप करें और वो पानी रोगी को पीने के लिए दे दें। स्वयं बीमार हों तो भी ऐसा ही करें।
इस जाप में किसी भी प्रकार के नियम की बाध्यता नहीं होती है। सोते समय, चलते समय, यात्रा में एंव शौच आदि करते वक्त भी मंत्र जप अपने मन की माला से करते रहे। मंत्र शक्ति का अनुभव करने के लिए कम से कम एक माला नित्य जाप करना चाहिए। मंत्र का जप प्रातः काल पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए एंव सांयकाल में पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जप करना श्रेष्ठ माना गया है।
3. औषधि – ज्योतिष शास्त्र का पुराना नाता आयुर्वेद से है, उसका अनुसरण करते हुए रोगी को धान ,लावा ,सरकुन्खा,बल प्रिया ,कांगनी आदि जो बाज़ार में आसानी से प्राप्त हो जाते हैं उसके अर्क से रोगी को स्नान करवाया जाता है।
ज्योतिषों के मुताबिक इंसानों की हर समस्या और बीमारी का निजात उसके ग्रह काल और कुंडलियों के हिसाब से कर उससे बचने के उपाय ज्योतिष के माध्यम से बताए जाते थे लेकिन युग परिवर्तन के साथ ज्योतिष की ये विद्या खो सी गई है।

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Major Ravi Sahaey
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Dr B Kapoor.